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Wednesday, May 16, 2012

मोहम्मद यूनुस की तरफ से इस्लामी रसूमात में तरमीम की ज़रूरत पर एम. हुसैन सदर के लेख का जवाब, Hindi Section, NewAgeIslam.com

Hindi Section
मोहम्मद यूनुस की तरफ से इस्लामी रसूमात में तरमीम की ज़रूरत पर एम. हुसैन सदर के लेख का जवाब
by मोहम्मद यूनुस, न्यु एज इस्लाम
(3) ये अपने पैरोकारों की व्यक्तिगत विशेषताओं और साख को कमजोर करता है। अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु, उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु, उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु, अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु, उमरो बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु, अदब अल्लाह इब्ने अबू राबिआ रज़ियल्लाहु अन्हु के जैसे लोग जो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के करीबी सहाबा थे, वो खानाबदोश (घुमंतू) नहीं थे। इसके अलावा, नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पैरोकारों में ऐसे लोग थे जो बाद में गवर्नर, व्यवस्थापक और तेजी से बढ़ रहे इस्लामी साम्राज्य के खुल्फा बन गए, और वो भी आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की वफात के सौ सालों के अंदर ही, इसकी हदें अटलांटिक महासागर (स्पेन) के किनारे से प्रशांत महासागर (चीन) तक फैल गई और अलग धर्म और संस्कृतियों, जिनसे इनका सामना हुआ, इससे अनगिनत लोग इस्लाम में दाखिल हो गये। कोई भी जिसे कुरान का बुनियादी इल्म है वो जानता है कि कुरान ने कई खानाबदोश (घुमंतू) अरबों के ईमान में कमजोरी (48:11) और कुछ को नेफाक़ में शदीद (9:95-97) बताया है। नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पैरोकारों की वज़ाहत खानाबदोश (घुमंतू) कबीलों के तौर पर करना कुरानी पैग़ाम और इतिहास दोनों में बिगाड़ पैदा करना है।

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