जिस तरह पूरे कुरआन में दीन अल-इस्लाम और तक़वा का इस्तेमाल किया गया है, लेखक इस तशरीह पर पहुंचते हैं। वो कहते हैं कि "कुरान दीन अल-इस्लाम को वही आफाकी पैग़ाम (सार्वभौम संदेश) वाला बताता है जो पहले के नबियों पर उतरा था, जो सभी सच्चे मुसलमान थे (2:131-133), और इसी असल पैग़ाम को उन्होंने लोगों तक पहुंचाया था। "वो कहते हैं कि ईमान का खुलासा इंसानियत की खिदमत के ज़रिए खुदा की इताअत करना है। इसी तरह तक़वा जो कुरान आयात में किसी न किसी शक्ल में सैकड़ों बार इस्तेमाल हुआ है, वो "किसी शख्स के आलमगीर सामाजी और एखलाकी ज़िम्मेदारियों के लिहाज़....." को ज़ाहिर करता है।
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