इस्लाम की शुरुआत और पैगम्बर सरकारे दोआलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के दुनिया में तशरीफ़ लाने से पहले अरब और गैर अरब देशों में औरत की कोई हैसियत नहीं थी। यहाँ तक कि बेजान चीजों की तरह उन्हें खरीदा और बेचा जाता था। उन्हें कल्त कर देना उनकी इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करना कोई गुनाह और ज़्यादती नहीं मानी जाती थी। विरासत में न तो उनका कोई हिस्सा हुआ करता था और न उनकी कोई इज्जत होती थी। शौहर के मरने के बाद बीवी शौहर के बेटे की संपत्ति समझी जाती थी। अगर औरत खूबसूरत हो तो वह उसे अपने पास रखता वरना उसे दूसरे के हाथों बेच दिया करता था। औरत को यौन आग बुझाने का सिर्फ ज़रिया और गुनाह की पैदावार समझा जाता था। औरत पर जुल्म और ज़्यादती का सिलसिला उस समय शुरू हो जाता था जब वो पैदा होती और बिल्कुल छोटी बच्ची होती थी। अरब के कई कबीलों में ये बुरी प्रथा आम थी कि बच्ची के जन्म के बाद उसे गाड़ दिया जाता था। कुरान में अहले अरब के इस बदबख्ताना अमल का अल्लाह ने खुद ज़िक्र किया है। इरशाद होता है '' जब इनमें से किसी को बेटी होने की खबर दी जाती है तो उसके चेहरे सियाही छा जाती है और गुस्से के कारण खून के घूंट पी कर रह जाताहै। लोगों से छिपता फिरता कि इस बुरी खबर के बाद लोगों को क्या मुँह दिखाये। सोचता है कि अपमान के साथ बेटी को रहने दे या मिट्टी में दबा दे''। (सूरे नहल- आयत संख्या:58, 59) एक दूसरी जगह इरशाद होता है। अपने बच्चों को मुफलिसी और मोहताज्गी के सबब कत्ल न करो हम उन्हें भी रिज़्क देते हैं और तुम्हें भी। उनका कत्ल बहुत बड़ी गलती और गुनाह है (सूरे- बनी इसराइल- आयत: 31)।
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