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Saturday, September 3, 2011

क़ुरान दहशतगर्दी की शिक्षा नहीं देता, Hindi Section, NewAgeIslam.com

Hindi Section
16 Aug 2011, NewAgeIslam.Com
क़ुरान दहशतगर्दी की शिक्षा नहीं देता
मुफ्ती मोहम्मद ज़ाहिद क़मरुल क़ासमी

क़ुरान मजीद जिस समय और जिस समाज में अवतरित हुआ, उसका सबसे तकलीफदेह (कष्टदायक) पहलू, अराजकता, अशांति और खून खराबा था। अराजकता का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि अरब में नियमित तौर से किसी शासन का वजूद नहीं था, अरब के आसपास जो शासन स्थापित थे, वो नस्ल के वर्चस्व पर विश्वास रखते थे, और जो इंसानी समाज जन्मजात महानता और तिरस्कार के विचार पर स्थापित हो, वहाँ न्याय का स्थापित होना सम्भव नहीं। ऐसे माहौल में अल्लाह की आखरी किताब क़ुरान मजीद के अवतरित होने की शुरुआत हुई। इस किताब में जो सबसे पहली आयत अवतरित हुई उसमें शिक्षा और कलम की अहमियत को बताया गया, कि तुम इंसानों के निर्माण का पदार्थ एक ही है। इसमें इंसान के एक होने की ओर इशारा था। शिक्षा इंसान को कानून का पाबंद बनाता है, और इंसानी बराबरी के विचार से न्याय का जज़्बा उभरता है, और इंसानियत के आदर करने का विश्वास परवान चढ़ता है। इसलिए एक ऐसा देश जो शांति से वंचित था, और जहाँ अत्याचार और दहशतगर्दी ने कानून का दर्जा हासिल कर लिया था, इस्लाम ने उसको शांति, सुरक्षा से परिचित कराया, इंसानी भाईचारा का सबक़ पढ़ाया और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) की भविष्यवाणी पूरी हुई कि एक महिला अकेली ऊँटनी पर सवार होकर सन्आ से यमन तक का सफर करेगी
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