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Wednesday, May 16, 2012

पाकिस्तानः बढ़ती हुई कशमकश और मज़हबी क़ूवतें, Hindi Section, NewAgeIslam.com

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पाकिस्तानः बढ़ती हुई कशमकश और मज़हबी क़ूवतें
by मुजाहिद हुसैन, न्यु एज इस्लाम
जाहिर है सहमी हुई और घिरी हुई सिविल सरकार एक बार फिर जी.एच.क्यू. की तरफ देखेगी और सैन्य नेतृत्व से विनती भरे स्वर में सवाल किया जाएगा कि देश के धार्मिक संगठनों के इस हिंसक मानी जाने वाली सभा की खुफिया सरपरस्ती से परहेज़ कैसे किया जा सकता है? जवाब में राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमाओं की रक्षा के पवित्र दायित्व जैसे पेचदार शब्दों की मदद से ये स्पष्ट करने की कोशिश की जाएगी कि देफाए पाकिस्तान कौंसिल की आवाज़ जनता की आवाज़ है। हालांकि देखा जाए तो जनता की आवाज़ पीपुल्स पार्टी, मुस्लिम लीग नवाज़, मुस्लिम लीग क़ायद, एम.क्यू.एम. और ए.एन.पी. हैं। हमीद गुल, हाफिज़ सईद, मुनव्वर हसन, समीउल हक, शेख रशीद, एसएम ज़फ़र और एजाज़ुल हक़ किसी सूरत भी कौमी नुमाइंदगी का दावा नहीं कर सकते क्योंकि उनमें से ज़्यदातर पिछले कई चुनावों में शर्मनाक हार खा चुके हैं। कई एक ऐसे हैं जिन्होंने पाकिस्तान में इंकलाब लाने का नारा लगाया, अपना अलग राजनीतिक दल बनाया लेकिन सिवाय उनके कोई दूसरा उनकी राजनीतिक पार्टी का सदस्य नहीं बना। मायूस और मोताज़बज़ब इन लोगों की इस जलसे के पास सिवाय इसके कुछ नहीं कि पाकिस्तान को खतरों से दो चार कर दिया जाये। विडंबना ये है कि आज इस सभा को राज्य के कुछ संगठन मदद कर रहे हैं ताकि नागरिक सरकार के लिए रुकावट पैदा की जाये और संभावित चुनाव में अपनी मर्ज़ी के नतीजे हासिल किये जायें। ये इदारे इस बात से बेखबर हैं कि इस तरह के हिंसक खयाल वाले जलसे को अगर खुलकर खेलने का मौका दिया गया तो जोखिम में घिरे राज्य का क्या बनेगा। मज़हबी व मसलकी हिंसा के प्रचारक इन जमातों के हाथों पाकिस्तान की क्या दुर्गत बनेगी और सबसे बढ़कर पाकिस्तान को किस तरह के बाहरी मोर्चों पर उलझना पड़ेगा?
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