कुरान 'अवामी बदकारी' या ज़िना के लिए कोड़े मारने की सज़ा का हुक्म देता है उस ज़माने में एक रिवाज था जो औरतों को इजाज़त देता था कि उनके शौहर अगर व्यापार, हमले या किसी मिशन के लिए घर से दूर हों तो वो अजनबियों के साथ रह सकती हैं (24:2)। इस रिवाज ने बच्चों के पिता को तय करने का विवाद पैदा किया जो वैवाहिक जीवन से बाहर पैदा हुए बच्चों की पहचान के लिए जमा होने पर बच्चों के चेहरे मुहरे को उसके पिता से तुलना करके किया जाता था और उसके बाद बच्चों के पिता का फैसला किया जाता था [3]। ये अमल, एक सामाजिक मेयार बन गया था, जो मर्दों को औरतों, जिनके साथ उन्होंने अस्थायी शादी की थी या साथ रहे थे, उनके प्रति सभी सामाजिक और वित्तीय ज़िम्मेदारियों से मुक्त करता था, यो औरतों को आर्थिक फायदे के लिए बदकारी पर मजबूर करता था, और इस तरह के संबंधों से पैदा हुए बच्चों को समाज के रहमो करम पर छोड़ देते थे। ये कुरान के परिवार कानून के बिल्कुल विरोधी था जो (1) पुरुषों को यौन, आर्थिक और सामाजिक लाइसेंस से महरूम करने, (2) बदकारी को संस्थागत बनने को खत्म करने, (3) औरतों को कानूनी, आर्थिक, विरासत और व्यक्तिगत अधिकार प्रदान करने और (4) तौलीदी मरहले में औरतों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए था। इसलिए एक हंगामी (आपात) कदम के तौर पर इश्तेआल अंगेज़ अमल को कुरान को रोकना था, जिसके लिए एक खास शब्द, 'ज़िना' (25:68, 17:32) और साथ ही साथ 'फाहिशतः' की आम शब्दावली का इस्तेमाल करता है (4:15)। उसी के मुताबिक, कुरान नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से फरमाता है, जब आपकी खिदमत में मोमिन औरतें इस बात पर बैअत करने के लिए हाज़िर हों कि वो अल्लाह के साथ किसी चीज़ को शरीक नहीं ठहरायेंगी औऱ चोरी नहीम करेंगी औऱ बदकारी नहीं करेंगी (60:12), तो उनकी बैअत कुबूल कर लिया करें।
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