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Wednesday, June 6, 2018

Virtues and Secrets of Fasting रोज़े की फ़ज़ीलत और इसके रहस्य और प्रतीक


कनीज़ फातिमा, न्यू एज इस्लाम
अल्लाह पाक ने कुरआन मजीद में इरशाद फरमाया: अनुवाद: “ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़े रखना फर्ज़ किया गया है जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर रोज़े रखना फर्ज़ किया गया था ताकि तुम मुत्तकी बन जाओ” (सुरह बकरा: 183)
रोजा का शाब्दिक अर्थ है: किसी चीज से रुकना और उसको त्यागना, और रोज़ा का शरई अर्थ है: मुकल्लफ़ और बालिग़ व्यक्ति का सवाब की नीयत से सूरज निकलने से लेकर सूरज डूबने तक खाने, पीने और जेमाअ को तर्क करना और अपने नफ्स को तकवा के हुसूल के लिए तैयार करनाl
अल्लामा गुलाम रसूल सईदी रह्मतुल्लाही अलैहि लिखते हैं: सभी दीन और मिल्लत में रोज़ा मारुफ़ व मशहूर है, प्राचीन मिस्री ‘यूनानी’ रोमन और हिन्दू सब रोज़ा रखते थे’ मौजूदा तौरात में भी रोज़ा दारों की तारीफ़ का ज़िक्र है’ और हज़रत मुसा (अलैहिस्सलाम) का चालीस दिन रोज़ा रखना साबित है’ योरोशलम की तबाही को याद रखने के लिए यहूद इस ज़माने में भी एक हफ्ते का रोज़ा रखते हैं’ इस तरह मौजूदा इन्जीलों में भी रोज़े को इबादत करार दिया गया है और रोज़ेदारों की तारीफ़ की गई है’ इसलिए अल्लाह पाक ने फरमाया है की जिस तरह तुम से पहले लोगों पर रोज़ा फर्ज किया गया था उसी तरह तुम पर रोज़ा फर्ज किया गया है’ ताकि मुसलामानों को रोज़ा रखने में रगबत हो क्योंकि किसी मुश्किल काम को आम लोगों पर लागू कर दिया जाता है तो फिर वह आसान हो जाता हैl
अल्लामा अलाउद्दीन हसकफी ने लिखा है की हिजरत के डेढ़ साल और तहवील ए किबला के बाद दस शाबान को रोज़ा फर्ज़ किया गयाl (दुर अल मुख्तार अला हामिश रद्दुल मुख्तार जिल्द २ पृष्ठ ८०  मतबुआ दारुल अहया अल तुरास अल अरबी’ बैरुत 1407 हिजरी)
सबसे पहले नमाज़ फर्ज की गई, फिर ज़कात फर्ज़ की गई’ इसके बाद रोज़ा फ़र्ज़ किया गया’ क्योंकि इन अहकाम में सबसे आसान नमाज़ है इसलिए इसको पहले फर्ज किया गया ‘ फिर इससे अधिक मुश्किल ज़कात है क्योंकि माल को अपनी मिल्कियात से निकालना इंसान पर बहुत शाक होता है’ इसके बाद इससे अधिक कठिन इबादत रोज़ा को फर्ज किया गया क्योंकि रोज़े में नफ्स को खाने पीने और तजवीज के अमल से रोका जाता है और यह इंसान के नफस पर बहुत शाक और दुश्वार हैl अल्लाह पाक ने अपनी हिकमत से बतदरीज शरई अहकाम नाज़िल फरमाए और इसी हिकमत से रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस्लाम के अरकान में नमाज़ और ज़कात के बाद रोज़े का ज़िक्र फरमाया’ कुरआन मजीद में भी इस तरतीब की तरफ इशारा है:
(आयत) “والخشعین والخشعت والمتصدقین والمتصدقت والصآئمین والصمت” (अल अहज़ाब:35)
अनुवाद और नमाज़ में खुशुअ करने वाले मर्द और नमाज़ में खुशूअ करने वाली औरतें और सदका देने वाले मर्द और सदका देने वाली औरतें और रोज़ा रखने वाले मर्द और रोज़ा रखने वाली औरतेंl
रोजों के फजाइल से संबंधित हदीसें
इमाम बुखारी रिवायत करते हैं:
हज़रात अबू हुरैरा रज़िअल्लाहु अन्हु से मरवी है की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: रोज़ा ढाल है’ रोज़ेदार ना जमाअ करे’ ना जिहालत की बातें करे’ अगर कोई शख्स उससे लड़ें या उसको गाली दे तो दो मर्तबा यह कहे मैं रोजादार हूँ’ उस ज़ात की कसम जिसके कब्जे व कुदरत में मेरी जान है! रोज़ेदार के मुंह की बू अल्लाह पाक को मुश्क की खुशबु से अधिक पसंद है’ अल्लाह पाक फरमाता है: वह अपने खाने ‘ पीने और नफस की ख्वाहिशात को मेरी वजह से तर्क करता है’ रोज़ा मेरे लिए हैं और मैं ही उसकी जज़ा दूंगा’ और (बाकी) नेकियों काजर दसगुना हैl (सहीह बुखारी जिल्द १ पृष्ठ २५४)
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जिसने ईमान की हालत में सवाब की नियत से लैलतुल कदर में कयाम किया उसके पहले (सगीरा) गुनाह बख्श दिए जाएंगे और जिसने ईमान की हालत में सवाब की नियत से रोज़ा रखा उनके पहले (सगीरा) गुनाह बख्श दिए जाएंगेl
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं: जिसने झटी बात और उस पर अमल करना नहीं छोड़ा तो अल्लाह को उसके खाना पीना छोड़ने की कोई हाजत नहींl
हज़रात अबू हुरैरा रज़िअल्लाहु अन्हु ब्यान करते हैं की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जिस शख्स ने रमज़ान का एक रोज़ा भी बिना उज्र या बिना मर्ज के छोड़ा तो अगर वह पुरे दहर भी रोज़े रखे तो उसका बदल नहीं हो सकताl (सहीह बुखारी जिल्द १ पृष्ठ २५९)
इमाम मुस्लिम रिवायत करते हैं:
हज़रात अबू सईद खुदरी (रज़िअल्लाहू अन्हु) ब्यान करते हैं की रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: जो व्यक्ति एक दिन अल्लाह की राह में रोज़ा रखता है अल्लाह पाक उसके चेहरे को जहन्नम से सत्तर साल की दूरी पर दूर कर देता हैl (सहीह मुस्लिम जिल्द १ पृष्ठ ‘३६४)
हाफ़िज़ मुन्ज़िरी लिखते हैं:
हज़रत सलमान (रदी अल्लाहु अन्हु) ब्यान करते हैं की हमें रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने शाबान के आखरी दिन खुतबा दिया और फरमाया: ऐ लोगों! तुम्हारे पास एक अज़ीम और मुबारक महीना आ पहुंचा है’ इस महीने में एक रात है जो हज़ार महीनों से बेहतर है’ अल्लाह ने इस महीने में रोज़ा को फर्ज कर दिया है और उसकी रात में कयाम को नफिल कर दिया है’ जो शख्स इस महीने में फर्ज अदा करे तो वह ऐसा है जैसे दुसरे महीने में सत्तर फर्ज अदा किए’ यह सब्र का महीना है और सब्र का सवाब जन्नत है’ यह गम्गुसारी करने का महीना है’ यह वह महीना है जिसमें मोमिन के रिज्क में ज़ियादती की जाती है’ इस महीने में जो किसी रोज़ेदार का रोज़ा इफ्तार कराए उसके लिए गुनाहों की मगफिरत है और उसकी गर्दन के लिए दोज़ख से आजादी है’ और उसको भी रोजेदार के जैसा अज्र मिलेगा और उस रोजेदार के अज्र में कोई कमी नहीं होगी’ सहाबा ने कहा: या रसूलुल्लाह! हम में से हर शख्स की यह इस्तिताअत नहीं है की वह रोज़ेदार को इफ्तार करा सके’ तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: अल्लाह पाक यह सवाब उस शख्स को भी अता फरमाएगा जो रोज़ेदार को एक खजूर या एक घूंट पानी या एक घूंट दूध से रोज़ा इफ्तार कराए’ यह वह महीना है जिसका पहला रहमत है, जिसका बीच मगफिरत है और जिसका आखिर जहन्नम से आज़ादी है’ जिस शख्स ने इस महीना में अपने खादिम से काम लेने में कमी की अल्लाह उसकी मगफिरत कर देगा और उसको दोज़ख से आज़ाद कर देगाl इस महीने में चार खसलतों को जमा करो’ दो खसलतों के बिना तुम्हारे लिए कोई चारह कार नहीं है’ जिन दो खसलतों से तुम अपने रब को राज़ी करोगे वह कलिमा ए शहादत पढ़ना है और अल्लाह पाक से इस्तिग्फार करना है’ और जिन दो खसलतों के बिना कोई चारह नहींहै वह यह हैं की तुम अल्लाह से जन्नत का सवाल करो और उससे दोजख से पनाह तलब करो और जो शख्स किसी रोज़ेदार को पानी पिलाएगा’ अल्लाह पाक उसको मेरे हौज़ से पिलाएगा’ उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी यहाँ तक की वह जन्नत में चला जाएगाl (सहीह इब्ने खुजैमा’ बेहकी, सहीह इब्ने हबान)
इमाम इब्ने हिबान ने यह भी रिवायत किया है की रसूलुल्लाह ने फरमाया की जिस शख्स ने रमज़ान के महीने में अपनी हलाल कमाई से किसी रोज़ेदार को रोज़ा इफ्तार कराया तो रमज़ान की सभी रातों में फरिश्ते उसके लिए इस्तिग्फार करते हैं और लैलतुल कदर में जिब्रील (अलैहिस्सलाम) उससे मुसाफ्हा करते हैं और जिस से जिब्रील (अलैहिस्सलाम) मुसाफ्हा करते हैं उसके दिल में रिक्कत पैदा होती है और उसके बहुत आंसू निकलते हैंl हज़रात सलमान ने कहा: या रसूलुल्लाह! यह फरमाइए अगर उसके पास रोटी का एक लुकमा भी ना हो? आपने फरमाया: वह एक मुट्ठी बआम दे दे , मैंने कहा: यह फरमाइए अगर उसके पास रोटी का एक लुकमा भी ना हो? आपने फरमाया: वह एक घूंट दूध दे दे’ मैंने अर्ज किया उसके पास वह भी ना हो? फरमाया: एक घोंट पानी दे दे (इमाम इब्ने खुजैमा और बेहकी ने भी इस को रिवायत किया है)
रोज़ेदार के असरार व रुमुज़:
1.    रोज़ा रखने से खाने पीने और शहवानी लाज्ज़तों () में कमी होती है, इससे हैवानी कुव्वत कम होती है और रूहानी कुव्वत ज़्यादा होती हैl
2.    खाने पीने और शहवानी अमल को तर्क करके इंसान कभी कभी अल्लाह की बे नियाज़ी वाली सिफत से मुत्तसिफ हो जाता है और बकद्र इमकान मालाएका मुकर्र्बीन के जैसा हो जाता हैl
3.    भूक और प्यास पर सब्र करने से इंसान को कठिनाइयों पर सब्र करने की आदत पड़ती है और मुशक्कत बर्दाश्त करने की मश्क होती हैl
4.    खुद भूखा और प्यासा रहने से इंसान को दूसरों की भूक और प्यास का एहसास होता है और फिर उसका दिल ग़रीबों की मदद की तरफ मायल होता हैl
5.    भूक प्यास की वजह से इंसान गुनाहों के करने से महफूज़ रहता हैl
6.    भूका प्यासा रहने से इंसान का तकब्बुर टूटता है और उसे एहसास होता है की वह खाने पीने की मामूली मिकदार का किस कदर मोहताज हैl
7.    भूका रहने से ज़ेहन तेज़ होता है और बसीरत काम करती है’ हदीस में है: जिसका पेट भूका हो उसकी फ़िक्र तेज़ होती हैl (अहयाउल उलूम जिल्द ३ पृष्ठ २१८) और पेट (भर कर खाना) बीमारी की जड़ है और परहेज़ इलाज की बुनियाद हैl (अहयाउल उलूम जिल्द ३ पृष्ठ २२१) और लुकमान ने अपने बेटे को नसीहत की: ऐ बेटे! जब मेदा भर जाता है तो फ़िक्र सो जाती है और हिकमत गुंगी हो जाती है और इबादत करने के लिए अंग सुस्त पद जाते हैं’ दिल की सफाई में कमी आ जाती है और मुनाजात की लज्ज़त और ज़िक्र में रिक्कत नहीं रहतीl
8.    रोज़ा किसी काम के ना करने का नाम है, यह किसी ऐसे अमल का नाम नहीं है जो दिखाई दे और उसका मुशाहेदा किया जाए’ यह एक छुपी हुई इबादत है’ इसके अलावा बाकी सभी इबादतें किसी काम के करने का नाम हैं वह दिखाई देती हैं और उनका मुशाहेदा किया जाए, यह एक मख्फी इबादत है’ इसके अलावा बाकी सभी इबादतें किसी काम के करने का नाम हैं वह दिखाई देती हैं और उनका मुशाहेदा किया जा सकता है और रोज़े को अल्लाह के सिवा कोई नहीं देखता’ बाकी सभी इबादतें किसी काम के करने का नाम हैं वह दिखाई देती हैं और उनका मुशाहेदा किया जाता है और रोज़ा को अल्लाह के सिवा कोई नहीं देखता’ बाकी सभी इबादतों में दिखावा हो सकता है रोज़े में हैं हो सकता’ यह इखलास के सिवा कुछ नहींl
9.    शैतान इंसान की रगों में दौड़ता है और भूक प्यास से शैतान के रास्ते तंग हो जाते हैं इसी तरह रोज़े से शैतान पर ज़र्ब पड़ती हैl
10.  रोज़ा अमीर और गरीब ‘शरीफ और खीस सब पर फर्ज़ है’ इससे इस्लाम की मसावात मुवक्कद हो जाती हैl
11. रोजाना एक वक्त पर सहरी और अफ्तार करने से इंसान को निजामुल औकात की पाबंदी करने की मश्क हो जाती हैl
अभी तक हमने रोज़े की फजीलत और उसके असरार व रुमुज़ पर मुख्तसर नजर कियाl अब आइए हम सूफी दृष्टिकोण से रोज़े की हकीकत का जायज़ा लें ताकि हमें रोज़े की हकीकी मारफत हासिल हो सकेl
हज़रत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी कुद्दसुल्लाह सिर्रुहू अपने खलीफा अरशद हुजुर ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह को रोज़ा की हकीकत ब्यान करते हुए लिखते हैं;
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं: ऐ उमर (रज़ीअल्लाहु अन्हु)! रोज़े की हकीकी तारीफ़ यह है की इंसान अपने दिल को सभी दीनी व दुनयवी इच्छाओं से बंद रखे, क्योंकि दीनी इच्छाएं (जैसे जन्नत और हूर आदि की इच्छा) अब्द और माबूद के बीच हिजाब (रुकावट) हैंl उनके होने हुए बन्दा अपने असली माबूद का विसाल हासिल नहीं कर सकता और दुनयावी इच्छाओं (जैसे धन दौलत की इच्छा, नफसानी इच्छा आदि) तो सरासर शिर्क हैl
गैरुल्लाह की तरफ फिकर व ख़याल करना, क़यामत का खौफ, जन्नत की होश, और आखिरत का फिकर, यह सब हकीकी रोज़े को तोड़ने वाली चीजें हैंl हकीकी रोज़ा तब दुरुस्त रह सकता है जबकि इंसान खुदा के सिवा हर चीज को अपने दिल से फरामोश कर देl अर्थात गैरुल्लाह का उसे मुतलक इलाम ना रहे और हर किस्म की उम्मीदें और हर तरह का खौफ अपने दिल से निकाल डालेl
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: رغبت عما دون الله , अर्थात अल्लाह पाक के सिवा किसी चीज का दीदार मुझे मतलूब नहीं हैl हकीकी रोज़े का इफ्तार केवल दीदार ए इलाही हैl
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: صوموا لرؤيته وافطروا لرؤيته ऐ उमर (राज़िअल्लाहू अन्हु)! हकीकी रोज़े की इब्तिदा में दीदार ए इलाही से होती है और इफ्तार अर्थात रोज़े की इन्तेहा भी दीदार ए इलाही पर होगीl
ऐ उमर (रज़िअल्लाहू अन्हु)! हकीकी रोज़े की इब्तिदा और इन्तेहा बखूबी जहन नशीन कर लेनी चहिये, अर्थात जानना चाहिए कि हकीकी रोज़ा किस चीज से रखा जाता है और किस चीज पर इफ्तार किया जाता हैl
इसलिए स्पष्ट है कि हकीकी रोज़े की इब्तिदा यह है की इंसान धीरे-धीरे मारफत ए इलाही हासिल कर ले और इसकी इन्तेहा अर्थात इफ्तार यह है की कयामत में उसे दीदार ए इलाही नसीब होl
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि: لصائمان فرحتان: فرحة عند الافطار وفرحة عند لقاء ربه अर्थात रोज़ेदार के लिए दो खुशियाँ हैं, एक इफ्तार के वक्त दूसरी दीदार ए इलाही के वक्तl
ऐ उमर (राज़िअल्लाहू अन्हु)! अवाम के रोज़े में पहले रोज़ा है और आखिर में इफ्तार, लेकिन हकीकी रोज़े में पहले इफ्तार है और आखिर में रोज़ा हैl देखो मजज़ूब सालिक जो की खुदा रसीदा हैं, वह हमेशा सायम (रोज़ेदार) रहते हैंl किसी वक्त भी उनका इफ्तार नहीं होताl क्योंकि रोज़ा हकीकी के लिए इफ्तार शर्त नहीं की कभी रोज़ा रखो और इफ्तार करोl वह हमेशा ही रोज़ेदार रहते हैंl
ऐ उमर (रज़िअल्लाहू अन्हु)! सभी लोग रोज़ा रखते हैं, जिनमें खाने पीने और जमाअ से इज्तिनाब करना पड़ता हैl यह हकीकी रोज़ा नहीं, बल्कि यह रोज़ा मजाज़ी हैl फना के यह अर्थ हैं की असरार ए इलाही उनको हासिल नहीं हुएl वह ज़ाहिरी ज़ीनत में मुबतला हैं और हकीकत से बेबहरा, लेकिन इस मजाज़ी रोज़े में गैरुल्लाह का तर्क नहीं होता और सभी नफसानी व इंसानी खतरे इसमें हायल होते रहते हैंl ऐसे रोजेदारों के कौल व फेल सब गैरुल्लाह हैंl ऐसा रोज़ा अर्थात मजाज़ी हरगिज़ हरगिज़ हकीकी और रहमानी नहीं हो सकताl इस ज़ाहिरी और मजाज़ी रोज़े से बजुज़ इसके और क्या फायदा हो सकता है कि इंसान रोज़ा रख कर नादारों और मुफलिसों की भूक और प्यास का एहसास कर सके और ग़रीबों और मिसकीनों की इमदाद कर सके और इसके सिवा, इस ज़ाहिरी रोज़े से और क्या फायदा सोचा जा सकता हैl (असरार ए हकीकी, उर्दू अनुवाद मक्तूब हज़रात सुल्तानुल हिन्द रह्मतुल्लाह अलैहि, अकबर बुक सेलर्ज़, सितम्बर २००४)

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