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Saturday, June 2, 2018

Is the prophet light or human being? A study in the light of the Quran पैगम्बर नूर हैं या बशर------कुरआन की रौशनी में





सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
अल्लाह ने इंसानों की हिदायत के लिए एक लाख चौबीस हज़ार पैगम्बर भेजेl वह सारे अंबिया और रशुल अल्लाह के चुनिंदा और पसंदीदा शख्स थे जो बुलंद अख़लाक़ व किरदार के मालिक थेl अल्लाह ने दुनिया के हर फिरके की हिदायत के लिए उसी फिरके में से नबी पैदा फरमायाl दुनिया में कोई फिरका या इलाका ऐसा नहीं जहां अल्लाह ने उंसी में से एक नबी या रसूल पैदा नहीं कियाl कुरआन की कई आयतों में इस बात का एलान मौजूद है:
(1)  “और हर फिरके के लिए एक रसूल हैl” (युनुस:47)
(2)  “और हर कौम के लिए हुआ है राह बताने वालाl” (अलराद:7)
(3)  और कोई फिरका नहीं जिसमें नहीं हो चुका दर सुनाने वालाl” (फातिर:24)
सभी अंबिया ए किराम ने अपनी कौम को मूर्ति पूजा, शिर्क और नैतिक व सामाजिक बुराइयों से रोकने की कोशिश कीl परिणाम स्वरूप उनकी कौम ने उनका विरोध किया क्योंकि वह अपने बाप दादा के दीन मूर्ति पूजा और शिर्क को छोड़ने को राज़ी नहीं थेl अंबिया ए किराम के दीन और संदेश के विरोध की एक वजह यह भी थी कि वह भी इंसान थे और इसी समाज का भाग थेl जब भी कोई नबी अपनी कौम से कहता कि मैं अल्लाह का भेजा ह़ा नबी हूँ और मुझे आदेश हुआ है कि तुम्हें तौहीद की शिक्षा दूँ और बूट परस्ती व शिर्क से रोकूँ तो उनकी कौम के लोग आश्चर्य करते कि उनहीं के जैसा एक इंसान अल्लाह का नबी या रसूल कैसे हो सकता है जो उनहीं की तरह खाना खाता है और बाज़ारों में फिरता हैl अगर वह नबी हैं तो उनके साथ फ़रिश्ते क्यों नहीं चलते और वह हाव भाव और सामाजिक रुतबे में उनसे भिन्न क्यों नहींl
जबकि कुरआन उनके संबंध में कहता है:
“ये अम्बिया लोग जिन्हें खुदा ने अपनी नेअमत दी आदमी की औलाद से हैं और उनकी नस्ल से जिन्हें हमने (तूफ़ान के वक्त) नूह के साथ (कश्ती पर) सवारकर लिया था और इबराहीम व याकूब की औलाद से हैं और उन लोगों में से हैं जिनकी हमने हिदायत की और मुन्तिख़ब किया जब उनके सामने खुदा की (नाज़िल की हुई) आयतें पढ़ी जाती थीं तो सजदे में ज़ारोक़तार रोते हुए गिर पड़ते थे” (मरियम: 58)
बूट परस्ती और शिर्क को सहीह दीन समझने वालों को यह सुन कर आश्चर्य होता था कि पुरी कायनात का मालिक एक अल्लाह की ज़ात हैl उनका अकीदा इस बात पर था कि इस कायनात के विभिन्न विभाग विभिन्न देवी देवताओं के अधीनस्थ हैंl बारिश का देवता अलग था, तो आग का देवता अलग, बीमारी से शिफा का देवता अलग था तो मुसीबतों से निजात का देवता अलगl इल्म देने वाला देवता अलग था और जंग का देवता अलग थाl इसलिए, जब खुदा के भेजे हुए रसूल उनसे कहते कि कायनात का बनाने वाला व मालिक और सर्वशक्तिमान एक है और इसलिए केवल वही पूजा के लायक है और तुम्हारे यह झूटे देवी देवता कोई शक्ति नहीं रखते तो वह हैरत व आश्चर्य में डूब जाते थेl
 “और आश्चर्य करने लगे इस बात पर कि आया उनके पास एक डर सुनाने वाला उनहीं में से और कहने लगे मुनकिर यह जादूगर है झूटाl क्या इसने करदी इतनों की बंदगी के बदले एक ही कि बंदगीl यह भी है बड़े आश्चर्य की बातl” (साद: 4-5)
एक दूसरी आयत में भी इसी विषय को इसी तरह बयान किया गया हैl
“क्या लोगों को इस बात से बड़ा ताज्जुब हुआ कि हमने उन्हीं लोगों में से एक आदमी के पास वही भेजी कि (बे ईमान) लोगों को डराओ और ईमानदारो को इसकी ख़ुश ख़बरी सुना दो कि उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में बुलन्द दर्जे है (मगर) कुफ्फार (उन आयतों को सुनकर) कहने लगे कि ये (शख्स तो यक़ीनन सरीही जादूगर) हैl” (युनुस-2)
इसलिए जब अंबिया ए किराम उनहें बूट परस्ती व शिर्क से बाज़ रखने की कोशिश करते और अल्लाह की परस्तिस की तलकीन करते तो कुफ्फर रसूलों के विरोध पर उतर आतेl यही सभी नबियों के साथ हो, यही नुह अलैहिस्सलाम के साथ हुआ और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ भी हज़रत नुह अलैहिस्सलाम की कौम के सरदारों ने कहाl
“तो उनके सरदार जो काफ़िर थे कहने लगे कि हम तो तुम्हें अपना ही सा एक आदमी समझते हैं और हम तो देखते हैं कि तुम्हारे पैरोकार हुए भी हैं तो बस सिर्फ हमारे चन्द रज़ील (नीच) लोग (और वह भी बे सोचे समझे सरसरी नज़र में) और हम तो अपने ऊपर तुम लोगों की कोई फज़ीलत नहीं देखते बल्कि तुम को झूठा समझते हैंl” (हूद: 27)
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का जवाब थाl
“और मै तो तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास खुदाई ख़ज़ाने हैं और न (ये कहता हूँ कि) मै ग़ैब वॉ हूँ (गैब का जानने वाला) और ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें मै ये नहीं कहता कि ख़ुदा उनके साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात ख़ुदा ही खूब जानता है और अगर मै ऐसा कहूँ तो मै भी यक़ीनन ज़ालिम हूँl” (हूद:31)
हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम के साथ भी उनकी कौम का सुलूक वही था जो हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के साथ उनकी कौम का थाl जब हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम के साथ भी उनकी कौम का सुलूक वही था जो नूह अलैहिस्सलाम के साथ उनकी कौम का थाl जब हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम को शिर्क व बूट परस्ती से बाज़ रहने की तलकीन की और उनहें नाप तौल में बेइमानी करने से मना किया तो उनकी कौम ने भी उनसे यही कहा कि हमें तो तू एक कमज़ोर व्यक्ति नज़र आता है और हमारी निगाह में तेरी अहमियत नहींl अगर हमें तेरे अजीजों और रिश्तदारों का पास ना होता तो हम तुझे संगसार कर देतेl
“और वह लोग कहने लगे ऐ शुएब जो बाते तुम कहते हो उनमें से अक्सर तो हमारी समझ ही में नहीं आयी और इसमें तो शक नहीं कि हम तुम्हें अपने लोगों में बहुत कमज़ोर समझते है और अगर तुम्हारा क़बीला न होता तो हम तुम को (कब का) संगसार कर चुके होते और तुम तो हम पर किसी तरह ग़ालिब नहीं आ सकतेl” (हूद: 91)
(1)  “आलिमुल गैब” (सबा:4)
(2)  आलिमुल गैब वल शहादतुल अज़ीज़l (अल तगाबुन: 18)
(3)  “(जो) चीज़ें (बीज वग़ैरह) ज़मीन में दाख़िल हुई है और जो चीज़ (दरख्त वग़ैरह) इसमें से निकलती है और जो चीज़ (पानी वग़ैरह) आसामन से नाज़िल होती है और जो चीज़ (नज़ारात फरिश्ते वग़ैरह) उस पर चढ़ती है (सब) को जानता है और वही बड़ा बख्शने वाला है (2) और कुफ्फार कहने लगे कि हम पर तो क़यामत आएगी ही नहीं (ऐ रसूल) तुम कह दो हॉ (हॉ) मुझ को अपने उस आलेमुल ग़ैब परवरदिगार की क़सम है जिससे ज़र्रा बराबर (कोई चीज़) न आसमान में छिपी हुई है और न ज़मीन में कि क़यामत ज़रूर आएगी और ज़र्रे से छोटी चीज़ और ज़र्रे से बडी (ग़रज़ जितनी चीज़े हैं सब) वाजेए व रौशन किताब लौहे महफूज़ में महफूज़ हैं (3)” (सबा: 2-3)
अल्लाह अपने रसूलों में से जिसे चाहता है अपने इल्म से एक अदना सा हिस्सा अता कर देता हैl कुफ्फर और यहूदी भी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से उनके इल्म का इम्तेहान लेने के लिए उनसे तरह तरह के सवाल करते थे जैसे वह सवाल करते थे कि आप नबी हैं और अल्लाह के भेजे हुए हैं तो बताइए कि क़यामत कब आएगी या यह कि रूह क्या है?
अल्लाह ने फरमाया-
“और (ऐ रसूल) तुमसे लोग रुह के बारे में सवाल करते हैं तुम (उनके जवाब में) कह दो कि रूह (भी) मेरे परदिगार के हुक्म से (पैदा हुईहै) और तुमको बहुत थोड़ा सा इल्म दिया गया हैl” (बनी इस्राइल: 85)
इसी तरह क़यामत के संबंध में सवाल पर कुरआन में अल्लाह कहता है-
“(ऐ रसूल) लोग तुमसे क़यामत के बारे में पूछा करते हैं (तुम उनसे) कह दो कि उसका इल्म तो बस खुदा को है और तुम क्या जानो शायद क़यामत क़रीब ही होl” (अल अहज़ाब: 63)
“(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस दिन का तुमसे वायदा किया जाता है क़रीब है या मेरे परवरदिगार ने उसकी मुद्दत दराज़ कर दी है (25) (वही) ग़ैबवॉ है और अपनी ग़ैब की बाते किसी पर ज़ाहिर नहीं करता (26) मगर जिस पैग़म्बर को पसन्द फरमाए तो उसके आगे और पीछे निगेहबान फरिश्ते मुक़र्रर कर देता है (27) ताकि देख ले कि उन्होंने अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचा दिए और (यूँ तो) जो कुछ उनके पास है वह सब पर हावी है और उसने तो एक एक चीज़ गिन रखी हैं (28)” (अल जिन: 25-28)
उपर्युक्त आयतों से स्पष्ट है कि अल्लाह ने गैब का इल्म अपने चुने हुए रसूलों को ही आवश्यकतानुसार  वही के माध्यम से अता किया और फिर रसूलों के साथ फरिश्तों को निगहबान कर दिया ताकि इस वही में शैतान दखल ना दे सके और अल्लाह का पैगाम पुरी सेहत के साथ अवाम तक पहुंचेl
कुरआन में अल्लाह हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहता है-
“(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल तो आया नहीं हूँ और मैं कुछ नहीं जानता कि आइन्दा मेरे साथ क्या किया जाएगा और न (ये कि) तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा मैं तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरे पास वही आयी है और मैं तो बस एलानिया डराने वाला हूँl” (अल अह्काफ: 9)
कुफ्फार आश्चर्य करते थे कि यह कैसा रसूल है खाना खाता है और जीवन की आवश्यकताओं के लिए बाज़ारों में फिरता हैl
“और उन लोगों ने (ये भी) कहा कि ये कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता है फिरता है उसके पास कोई फरिश्ता क्यों नहीं नाज़िल होता कि वह भी उसके साथ (ख़ुदा के अज़ाब से) डराने वाला होताl” (अल फुरकान: 7)
अल्लाह उनके आपत्ति का जवाब इस प्रकार देता है
“और (ऐ रसूल) हमने तुम से पहले जितने पैग़म्बर भेजे वह सब के सब यक़ीनन बिला शक खाना खाते थे और बाज़ारों में चलते फिरते थे और हमने तुम में से एक को एक का (ज़रिया) आज़माइश बना दिया (मुसलमानों) क्या तुम अब भी सब्र करते हो (या नहीं) और तुम्हारा परवरदिगार (सब की) देख भाल कर रहा हैl” (अल फुरकान: 20)
इस तरह अल्लाह ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पिछली कौमों का हाल इंसान की इबरत के लिए बतायाl उन कौमों का हाल इंसान को मालूम नहीं थाl हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की कौम के बुरे कामों और नाफरमानियों का हाल और हज़रत नुह अलैहिस्सलाम के साथ उनकी शरअन्गेज़ियों और फिर उनकी तबाही का हाल विस्तार से बताने के बाद हुजुर ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से फरमाता हैl
“(ऐ रसूल) ये ग़ैब की चन्द ख़बरे हैं जिनको तुम्हारी तरफ वही के ज़रिए पहुँचाते हैं जो उसके क़ब्ल न तुम जानते थे और न तुम्हारी क़ौम ही (जानती थी) तो तुम सब्र करो इसमें शक़ नहीं कि आख़िारत (की खूबियाँ) परहेज़गारों ही के वास्ते हैंl” (हूद: 49)
एक दूसरी आयत में भी अल्लाह रसूल ए पाक से कहता है
“(ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी तुम्हारा ही ऐसा एक आदमी हूँ (फर्क़ इतना है) कि मेरे पास ये वही आई है कि तुम्हारे माबूद यकता माबूद हैं तो वो शख्स आरज़ूमन्द होकर अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होगा तो उसे अच्छे काम करने चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक न करेंl” (अल कहफ़: 110)
एक दूसरी आयत में भी कुरआन गैब का मालिक केवल अल्लाह को करार देता है
“और कहते हैं कि उस पैग़म्बर पर कोई मोजिज़ा (हमारी ख्वाहिश के मुवाफिक़) क्यों नहीं नाज़िल किया गया तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ग़ैब (दानी) तो सिर्फ ख़ुदा के वास्ते ख़ास है तो तुम भी इन्तज़ार करो और तुम्हारे साथ मै (भी) यक़ीनन इन्तज़ार करने वालों में हूँl” (युनुस: 20)
हुजुर ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले हज़रत नुह अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम से कहा था कि ना मेरे पास अल्लाह के खज़ाने हैं ना मेरे पास गैब का इल्म है और ना मैं फरिश्ता हूँl इसी तरह हुजुर ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से भी अल्लाह ने कुरआन में कहा कि वह अपनी कौम के सामने एलान करदेंl
“(ऐ रसूल) उनसे कह दो कि मै तो ये नहीं कहता कि मेरे पास ख़ुदा के ख़ज़ाने हैं (कि ईमान लाने पर दे दूंगा) और न मै गैब के (कुल हालात) जानता हूँ और न मै तुमसे ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ मै तो बस जो (ख़ुदा की तरफ से) मेरे पास वही की जाती है उसी का पाबन्द हूँ (उनसे पूछो तो) कि अन्धा और ऑंख वाला बराबर हो सकता है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं सोचतेl” (अल अनआम: 50)
कुरआन में बार बार अल्लाह को अलीम और हकीम कहा गया है जिसका अर्थ है कि सभी इल्म व हिकमत का मालिक केवल अल्लाह हैl
“और उसके पास ग़ैब की कुन्जियॉ हैं जिनको उसके सिवा कोई नही जानता और जो कुछ ख़ुशकी और तरी में है उसको (भी) वही जानता है और कोई पत्ता भी नहीं खटकता मगर वह उसे ज़रुर जानता है और ज़मीन की तारिक़ियों में कोई दाना और न कोई ख़ुश्क चीज़ है मगर वह नूरानी किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद हैl” (अल अनआम:59)
कुरआन में अल्लाह के आलिमुल गैब होने और नबियों के रुतबे का संबंध में कई स्थान पर खोल कर बयान कर दिया गया है कि जिसके बाद किसी शक या मतभेद की कोई गुंजाइश नहीं रह जातीl अल्लाह रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहता है-
“और जब तक तुम हम पर ख़ुदा के यहाँ से एक किताब न नाज़िल करोगे कि हम उसे खुद पढ़ भी लें उस वक्त तक हम तुम्हारे (आसमान पर चढ़ने के भी) क़ायल न होगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सुबहान अल्लाह मै एक आदमी (ख़ुदा के) रसूल के सिवा आख़िर और क्या हूँl” (बनी इस्राइल: 93)
कुरआन अल्लाह के आलिमुल गैब होने का समर्थन इस आयत में भी करता है-
“और (ऐ रसूल) अगर तुमपर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो उन (बदमाशों) में से एक गिरोह तुमको गुमराह करने का ज़रूर क़सद करता हालॉकि वह लोग बस अपने आप को गुमराह कर रहे हैं और यह लोग तुम्हें कुछ भी ज़रर नहीं पहुंचा सकते और ख़ुदा ही ने तो (मेहरबानी की कि) तुमपर अपनी किताब और हिकमत नाज़िल की और जो बातें तुम नहीं जानते थे तुम्हें सिखा दी और तुम पर तो ख़ुदा का बड़ा फ़ज़ल हैl” (अन्निसा: 113)
गैब का इल्म अल्लाह ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को भी दिया थाl हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं:
“और बनी इसराइल का रसूल (क़रार देगा और वह उनसे यूं कहेगा कि) मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) यह निशानी लेकर आया हूं कि मैं गुंधीं हुई मिट्टी से एक परिन्दे की सूरत बनाऊॅगा फ़िर उस पर (कुछ) दम करूंगा तो वो ख़ुदा के हुक्म से उड़ने लगेगा और मैं ख़ुदा ही के हुक्म से मादरज़ाद (पैदायशी) अंधे और कोढ़ी को अच्छा करूंगा और मुर्दो को ज़िन्दा करूंगा और जो कुछ तुम खाते हो और अपने घरों में जमा करते हो मैं (सब) तुमको बता दूंगा अगर तुम ईमानदार हो तो बेशक तुम्हारे लिये इन बातों में (मेरी नबूवत की) बड़ी निशानी हैl” (आल ए इमरान: 49)
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खुदा ने किताब और इल्म व हिकमत अता कीl हुजुर ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुदा के अता किये हुए इल्म की बदौलत अनगिनत भविष्य वाणी की और अल्लाह के हुक्म से पिछली कौमों के हाल सुनाए ताकि मुसलमान रहती दुनिया तक उनके हालात से इबरत हासिल करते रहेंl अल्लाह के कादिर ए मुतलक होने की एक सिफत यह भी है वह आलिमुल गैब, अलीम और हकीम है अर्थात सभी इल्म पर उसकी इजारा दारी है और वह अपने इल्म का कुछ हिस्सा रसूलों को जर्फ़ के अनुसार अता कर देता हैl इससे रसूलों के रुतबे, उनकी अजमत ए पाकी पर और उनके नबूवत के दर्जे पर जर्रा बराबर फर्क नहीं पड़ताl अल्लाह को यह पसंद नहीं कि मुसलमान उनकी कुदरत और इलाम में किसी को शरीक ठहराएंl इसलिए उसने कई स्थान पर अपने रसूलों ही की जुबान से कहलवाया कि वह अल्लाह के भेजे हुए नबी और बशर हैं और उनहें गैब का इल्म नहींl गैब का इल्म केवल अल्लाह को हैl और वह अपने बुरे भले के मालिक नहीं हैंl
“(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै खुद अपने वास्ते नुकसान पर क़ादिर हूँ न नफा पर मगर जो ख़ुदा चाहे हर उम्मत (के रहने) का (उसके इल्म में) एक वक्त मुक़र्रर है-जब उन का वक्त आ जाता है तो न एक घड़ी पीछे हट सकती हैं और न आगे बढ़ सकते हैंl” (युनुस: 49)
“और कहने लगे जिस चीज़ की तरफ तुम हमें बुलाते हो उससे तो हमारे दिल पर्दों में हैं (कि दिल को नहीं लगती) और हमारे कानों में गिर्दानी (बहरापन है) कि कुछ सुनायी नहीं देता और हमारे तुम्हारे दरमियान एक पर्दा (हायल) है तो तुम (अपना) काम करो हम (अपना) काम करते हैं (5) (ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी बस तुम्हारा ही सा आदमी हूँ (मगर फ़र्क ये है कि) मुझ पर 'वही' आती है कि तुम्हारा माबूद बस (वही) यकता ख़ुदा है तो सीधे उसकी तरफ मुतावज्जे रहो और उसी से बख़शिश की दुआ माँगो, और मुशरेकों पर अफसोस हैl” (फुस्सिलात: 5-6)
इन खुली हुई आयतों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि गैब का इल्म केवल अल्लाह को है और जितने अंबिया ए किराम आए वह बशर थे जैसा कि कुरआन बार बार कहता हैl खुदा के नूर की सिफत हैl कुरआन कहता है कि अल्लाह जमीन और आसमान का नूर हैl
اللہ نور السموٰات والارض
इसलिए, अल्लाह ने कुरआन में रसूलों के रुतबे के संबंध में आयतें उतारें ताकि ईमान वाले अंबिया के सहीह मर्तबे को पहचानें और उनके रुतबे से संबंधित मुबालगे से बचेंl

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