गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
(अंग्रेज़ी से अनुवाद: न्यू एज इस्लाम)
25 मई 2018
एक
बार फिर मॉडरेशन और भारतीय सेकुलरिज्म के मसले को इस तरह पेश किया है जैसे
इस्लाम अपने मानने वालों को एतेदाल पसंदी और भारत जैसे सेकुलर देशों के साथ
अमन व शान्ति के साथ रहने का कोई जवाज़ पेश नहीं करताl सोशल मीडिया के
अनुसार इस बार इस सोच का हामिल ज़ाकिर मुसा है जो भारतीयों के खिलाफ उभरने
वाली तंजीम अल कायदा की नई शाख अंसार गाज्वतुल हिन्द का सरबराह हैl
सोशल मीडिया के अनुसार इस समाचार का विवरण निम्नलिखित है-
हिजबुल
मुजाहिदीन के पूर्व प्रमुख ज़ाकिर मुसा ने अपने एक पांच मिनट की वीडियो में
हुर्रियत के नेताओं को धमकी देते हुए कहा है की वह लोग उसकी राह में
“काँटा” ना बनें और यह की अगर उन्होंने कश्मीर के संघर्ष को इस्लामी हुकूमत
कायम करने के लिए एक मज़हबी संघर्ष करार देंनें के बजाए राजनीतिक संघर्ष
करार देना जारी रखा तो वह उन नेताओं का सर कलम कर देगाl ज़ाकिर मुसा के इस
धमकी भरे सन्देश ने कश्मीर के सदन में हलचल मचा दी, इसके जवाब में हिजबुल
मुजाहिदीन के प्रवकता सलीम हाशमी ने कहा की “ ज़ाकिर मुसा का यह बयान
अस्वीकार्य योग्य हैl यह ज़ाकिर मुसा की व्यक्तिगत राय है”l उसने मजीद कहा
की “ इस प्रकार का कोई भी भड़काऊ बयान कश्मीर की आज़ादी की तहरीक के लिए
हानिकारक होगा”l
हिजबुल
मुजाहिदीन के प्रवकता के बयान के कुछ घंटों बाद ज़ाकिर मुसा ने एक और
वीडियों के माध्यम से हिजबुल मुजाहेदीन से दस्तबरदारी का इज़हार करते हुए यह
स्पष्ट किया की उसकी धमकी केवल उन लोगों के लिए थी जो एक सेकुलर रियासत की
बात कर रहे थेl उसका कहना था: “मैंने किसी ख़ास व्यक्ति या जीलानी साहब के
खिलाफ कुछ नहीं कहा हैl सर कलम करने वाली बात का संबंध हुर्रियत के साथ
नहीं है, बल्कि मेरा सन्देश उन सेकुलरों के बारे में है जो एक सेकुलर राज्य
की हिमायत करते हैंl ज़ाकिर मुसा का कहना है की “ अगर हमने सेकुलरिज्म के
लिए आज़ादी हासिल कर ली तो फिर हमें उनके खिलाफ एक और जंग शुरू करना होगी
इसलिए, यह बताना बहुत जरुरी थाl और आज के बाद से हिजबुल मुजाहिदीन के साथ
मेरा कोई संबंध नहीं हैl एक और बात यह है की वह आइएसआइएस और अलकायदा की बात
करते हैंl ना ही आइएसआइएस या अलकायदा के बारे में कुछ जानता हूँ ना ही मैं
यह कह सकता हूँ की वह गलत हैं क्योंकि मैंने उन पर कोई रिसर्च नहीं किया
हैl इन सब बातों में रिसर्च के लिए मेरे पास अधिक समय नहीं होताl लेकिन मैं
उनको गलत नहीं कह सकताl और मैं उन लोगों पर भी भरोसा नहीं कर सकता जो उनके
साथ बैठ कर मिठाइयां खाते हैं और उन (आइएसआइएस और अलकायदा) के खिलाफ फ़तवा
जारी करते हैंl मैं यह भी नहीं कह सकता की वह सहीह है या गलत, क्योंकि
मैंने उनके बारे में ना तो कोई रिसर्च की है और ना ही मैंने उनके बारे में
कुछ पढ़ा हैl” (1)
ज़ाकिर
मुसा की ओर से क़त्ल की धमकी उस समय आई जब 9 मई को सय्यद अली शाह गीलानी,
मीर वाइज़ उमर फारुक और मुहम्मद यासीन मालिक ने कहा की कश्मीर का मसला
राजनीतिक है और यहाँ की मौजूदा तहरीक मुकामी है और इसका आइएसआइएस और
अलकायदा जैसी तंजीमों के साथ कोई संबंध नहीं है उन्होंने यह इलज़ाम लगाया कि
“भारीतय एजेंसियां इस तहरीक को योजनाबद्ध तरीके से बदनाम कर रही हैंl” इन
तीनों ने अपने एक ब्यान में कहा की “आइएसआइएस और अलकायदा जैसे गिरोह राज्य
में उपस्थित नहीं हैं और हमारी तहरीक के अन्दर उन गिरोहों का कोई किरदार
नहीं हैl एजेंसियां इख्वान जैसे कुछ बीमार मानसिकता के गुंडों का इस्तेमाल
कर रही हैं जिनका काम राज्य में अफरा तफरी का माहौल पैदा करना हैl उन्होंने
आज़ादी की उस संघर्ष को बदनाम करने और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण को
प्रभावित करने के लिए उन गिरोहों के जरिये रहस्यमय हत्या, चोरी, लुट मार और
नकब ज़नी का रास्ता अख्तियार करने का फैसला किया हैl (२)
उपरोक्त
नाटकीय हालात व घटनाओं में हम ज़ाकिर मुसा के दो अहम लक्ष्य व उद्देश्य को
समझ सकते हैं: 1) आज़ादी ए कश्मीर की संघर्ष को इस्लामी संघर्ष के बजाए
राजनीतिक संघर्ष करार देने वालों का सर कलम कर देना, 2) उन सेकुलरों को मौत
के घाट उतारना जो सेकुलर राज्य की हिमायत करते हैंl
ज़ाकिर
मुसा के उपरोक्त दृष्टिकोण की रौशनी में उलेमा ए इस्लाम ज़ाकिर मुसा के
ज़हनी मर्ज़, असंतुलन, पथ भ्रष्ट चरमपंथ का प्रदर्शन कर सकते हैंl ज़ाकिर मुसा
के बयानों से दो बुनियादी प्रश्न पैदा होते हैं जिसका जवाब सोशल मीडिया पर
मुझसे तलब किया गया, वह दो सवाल यह हैं 1) क्या इस्लामी दृष्टिकोण से उन
लोगों के हत्या का जवाज़ तलाश किया जा सकता है जो आज़ादी ए कश्मीर की संघर्ष
को राजनीतिक संघर्ष मानते हैं? २) दुसरा सवाल यह है की इस्लाम ने कभी कहीं
इस बात का आदेश दिया है की जो सेकुलर मुसलमान किसी सेकुलर राज्य की हिमायत
करेगा उसे कत्ल कर दिया जाएगा?
ज़ाकिर
मुसा का बयान असल में इस्लाम और शरीअत पर झूट बाँधना हैl इस्लाम का निजाम
दर असल न्याय पर कायम है जिसका उद्देश्य दुनिया व आखिरत में इंसान को भलाई
की तरफ ले जाना हैl इस्लाम कदापि इस बात की अनुमति नहीं दे सकता की कश्मीर
की आज़ादी के संघर्ष को राजनीतिक संघर्ष कहने वाले का कत्ल कर दिया जाए और
इसी तरह प्रश्न किए गए स्थिति में इस्लाम कदापि इसकी अनुमति नहीं देता की
भारत जैसे सेकुलर देश की हिमायत करने वाले मुसलमान का कत्ल कर दिया जाएl यह
तो ज़ाकिर मुसा का इस्लामी शरीअत पर झूट बाँधना हैl अगर अलकायदा से जुड़े
होने वाली रिपोर्ट सहीह है तो संभव है की ज़ाकिर मुसा ने इस फ़िक्र को
अलकायदा जैसी गैर इस्लामी दहशतगर्द संगठन से सीखा होl तथापि इस तरह की
फिकरी मर्ज़ और इन्तेहा पसंदी के संभव खतरों से अनजान कश्मीरी नौजवानों को
बचाने के लिए कुरआन करीम की रौशनी में ज़ाकिर मुसा के बयानात की तरदीद जरुरी
हैl
ज़ाकिर मुसा के बयान नम्बर 1 की तरदीद
ज़ाकिर
मुसा का कहना है कि “वह उन लोगों का सर कलम कर देगा जो आज़ादी ए कश्मीर की
संघर्ष को इस्लामी हुकूमत कायम करने के लिए एक मजहबी संघर्ष के बजाए
राजनीतिक संघर्ष करार देना जारी रखेंगे”l
इस
बयान में सर कलम करने की जो बात की गई है इस्लामी शरियत में कहीं इसका जवाज़
नहींl यह बयान केवल कश्मीर के शहरियों और उनकी आज़ादी ए इज़हार राय के लिए
खतरा और खौफ व हरास का माहौल पैदा करेगा कुरआन व सुन्नत से कहीं भी इस तरह
के कतल करने का जवाज़ नहीं मिलताl बल्कि इस्लामी दृष्टिकोण से ऐसी राय कायम
करने वाले नागरिकों को कत्ल करना नाजायज व हराम साबित होगाl यह बात तो सूरज
से भी ज्यादा रौशन है की इस्लाम में बेगुनाह लोगों और शहरियों का कत्ल
करना बिलकुल हराम है, बल्कि किसी एक नागरिक का अनायास क़त्ल पुरी इंसानियत
के कत्ल के बराबर है जैसा की कुरआन स्पष्ट तौर पर सुरह मायदा की आयत 32 में
इस कल्पना को पुरी दुनिया के सामने पेश करके गौर व फ़िक्र की दावत देता है
की ऐ लोगों इस्लाम किसी भी बेगुनाह इंसान के कत्ल की दावत नहीं देता और
इस्लाम यहाँ इस बात पर भी गौर व फ़िक्र करने की दावत दे रहा है कि ऐ लोगों
अगर कोई संगठन या कोई व्यक्ति इस्लाम के नाम पर किसी का खून बहाए तो समझ
लेना वह अमल इस्लामी नहीं है बल्कि इस्लामी शरीअत पर झूट बाँधना हैl
अल्लाह
पाक इरशाद फरमाता है: “इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था
कि जो शख्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा
में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और
जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन
(बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके
हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज्यादतियॉ करते
रहे (5:32)
उपर्युक्त
आयत से यह साबित होता है की किसी एक शख्स का नाहक कत्ल पुरी इंसानियत के
क़त्ल के बराबर है एक शख्स की ज़िन्दगी बचाना पुरी इंसानियत की ज़िन्दगी बचाने
की मानिंद हैl इस आयत का पैगाम मुसलामानों और गैर मुस्लिमों दोनों पर
मुन्तबक होता हैl
चूँकि
ज़ाकिर मुसा का बयान कश्मीरी मुसलामानों के संदर्भ में हैं जो आज़ादी ए
कश्मीर की संघर्ष को राजनीतिक संघर्ष मानते हैं, इसलिए आइए उस दृष्टिकोण से
देखें कि मुसलामानों का नाहक कत्ल करने के संबंध में इस्लाम का क्या
स्टैंड हैl
कुरआन करीम का फरमान है:
“और
जो कोई मुसलामानों को जान बुझ कर कत्ल करे तो उसका बदला जहन्नम है कि
बरसों उसमें रहे और अल्लाह ने उस पर गज़ब किया और उस पर लानत की और उसके लिए
तैयार रखा बड़ा अज़ाबl” (4:93)
इस
आयत से हम यह समझ सकते हैं की एक मुसलमान का जान बुझ कर कत्ल करना एक बड़ा
गुनाह है जिसके करने वाले को मुद्दतों जहन्नम में रखा जाएगाl ज़ाकिर मूसा को
इस आयत पर गौर करना चाहिए और अपना इरादा बदल कर तौबा व इस्तिग्फार करना
चाहिएl
अल्लाह पाक फरमाता है:
“(ऐ
रसूल) तुम उनसे कहो कि (बेबस) आओ जो चीज़ें ख़ुदा ने तुम पर हराम की हैं वह
मैं तुम्हें पढ़ कर सुनाऊँ (वह) यह कि किसी चीज़ को ख़ुदा का शरीक़ न बनाओ और
माँ बाप के साथ नेक सुलूक़ करो और मुफ़लिसी के ख़ौफ से अपनी औलाद को मार न
डालना (क्योंकि) उनको और तुमको रिज़क देने वाले तो हम हैं और बदकारियों के
क़रीब भी न जाओ ख्वाह (चाहे) वह ज़ाहिर हो या पोशीदा और किसी जान वाले को जिस
के क़त्ल को ख़ुदा ने हराम किया है न मार डालना मगर (किसी) हक़ के ऐवज़ में वह
बातें हैं जिनका ख़ुदा ने तुम्हें हुक्म दिया है ताकि तुम लोग समझो और यतीम
के माल के करीब भी न जाओl” (6:151)
उपर्युक्त
आयत से यह स्पष्ट है की इंसान किसी भी धर्म या मजहब का हो उसके नाहक कत्ल
को इस्लाम ने हराम करार दिया हैl अपने उल्लेखित ब्यान के माध्यम से ज़ाकिर
मूसा ने ऐसे काम अंजाम देने का वादा किया है जिसे अल्लाह ने हराम करार दिया
हैl क्या वह कयामत के दिन पर यकीन नहीं रखता की जब उसे बेगुनाह इंसानों के
कत्ल का हिसाब देना होगा? क्या वह यह नहीं देखता की कुरआन के उल्लेखित
आदेश (4:93) के अनुसार अगर वह किसी बेगुनाह इंसान का नाहक खून करेगा तो उसे
दर्दनाक अज़ाब का सामना करना होगा?
कुरआन करीम का फरमान है:
“और
जो लोग ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतों को बगैर कुछ किए द्दरे (तोहमत देकर)
अज़ीयत देते हैं तो वह एक बोहतान और सरीह गुनाह का बोझ (अपनी गर्दन पर)
उठाते हैंl” (33:58)
कुरआन
मजीद के अनुसार उन मोमिनों को हानि पहुंचाना एक खुला गुनाह है जिन्होंने
कुछ गलत नहीं किया हैl ज़ाकिर मूसा को कुरआन की उपर्युक्त आयतों की रौशनी
में अपना मुहासबा और अपने तर्ज़ फ़िक्र की इस्लाह करनी चाहिएl अब हम उसके
सामने कुछ ऐसी हदीसें पेश करते हैं जिनसे मालुम होता है की उसका रास्ता
इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ हैl
रिवायत
है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि: “एक सच्चा मुसलमान वह है
जिसकी जुबान और हाथों से दुसरे सभी मुसलमान सुरक्षित हैंl और एक सच्चा
मोमिन वही है जिस से लोगों की ज़िन्दगी और दौलत सुरक्षित हैl और एक सच्चा
मुजाहिद वह है जो अपने नफ्स को ज़ेर करता है और उसे खुदा की इताअत पर मजबूर
करता है; और एक सच्चा मुहाजिर वह है जो हर उस चीज को छोड़ देता है जिससे
खुदा ने माना किया हैl कसम है उस ज़ात की जिसके कब्ज़े कुदरत में मेरी जान है
वह शख्स जन्नत में दाखिल नहीं होगा जिसका पड़ोसी उसके ज़ुल्म से महफूज़ ना
हो” (यह हदीस कुछ शब्दों के रद्द व बदल के साथ बुखारी, मुस्लिम, तिरमिज़ी,
निसाई, अबू दाउद, अहमद इब्ने हम्बल, दारमी, इब्ने हिबान, बेहकी, निसाई
सुननुल कुबरा, इब्ने अबी शुएब, अब्दुर्रज्जाक, अबू याला हमीदी ने नक़ल किया
है)
रिवायत है की “एक मुसलमान को गाली देना फुसुक है और उसका कत्ल कुफ्र हैl” (सहीह बुखारी जिल्द 9, किताब 88, हदीस नंबर 197)
सुनन
इब्ने माजा, इमाम तबरानी ने अपनी किताब “मुसनद अल शामीन” में इमाम अल
मंजरी ने ‘अल तरगीब वल तरहीब’ में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस से
निम्नलिखित हदीस से रिवायत की है:
“मैंने
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को काबे के गिर्द तवाफ़ के दौरान
काबे से यह कहते हुए देखा: तू कितना पाक और मुक़द्दस है! तेरी खुशबु कितनी
खालिस (शुद्ध) और अच्छी है! तू कितना अज़ीम औ आला है! तेरी हुरमत अज़ीम और
बुलंद हैl लेकिन कसम है उस ज़ात की जिसके कब्ज़े कुदरत में मुहम्मद की जान
है’ मोमिन के खून और उसके माल की हुरमत अल्लाह की नज़र में तेरी हुरमत से
कहीं अधिक बुलंद हैl
इस्लाम
में एक मोमिन की ज़िंदगी को कितनी अहमियत हासिल है इसका अंदाज़ा इस अम्र से
आसानी के साथ लगाया जा सकता है की एक मोमिन के खून की हुरमत काबे से अधिक
हैl इसलिए, ज़ाकिर मुसा और इस जैसी सोच रखने वाले हर व्यक्ति को अपनी इस्लाह
कर लेनी चाहिएl
रिवायत है की रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“तुम
में से कोई अपने भाई की तरफ हथियार ना उठाए, इसलिए की वह नहीं जानता की
शैतान की वजह से उसके हाथ से हथियार चुक कर गिर जाए और उससे किसी को ज़ख्म
लग जाए और इस तरह वह जहन्नम का हकदार बन जाए” (सहीह मुस्लिम; किताब अल
बिर्र वल सिलह वल आदाब, इमाम हाकिम ने इस हदीस को अल मुस्तदरक में और बेहकी
ने अल सुनन अल कुबरा में रिवायत किया है)l
रिवायत है की हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“जो
व्यक्ति अपने भाई की तरफ हथियार उठाता है फरिश्ते उस पर लानत भेजना शुरू
कर देते हैं चाहे वह उसका सगा भाई ही क्यों ना हो, यहाँ तक कि वह हथियार रख
देl (सहीह मुस्लिम, इमाम तिरमिज़ी उसी हदीस को अल सुनन में, इमाम हाकिम अल
मुस्तदरक में और इमाम बेहकी अल सुनन अल कुबरा में रिवायत करते हैं)
खेल
खेल में भी मुसलमान की तरफ छुरी, खंजर, तलवार, या बन्दुक जैसा कोई हथियार
उठाना इस्लाम में हराम हैl मुसलामानों के लिए किसी दुसरे मुसलमान को गैर
जरुरी तौर पर डराना भी सख्त मना हैl और हमें इस हदीस से यही शिक्षा मिलती
है कि” जो व्यक्ति अपने भाई की तरफ हथियार उठाता है फरिश्ते उस पर लानत
भेजना शुरू कर देते हैं”l
इमाम
बेहकी अल सुनन अल कुबरा में, सुनन इब्ने माजा में, इमाम रबीअ अपनी मुसनद
में निम्नलिखित हदीस नक़ल करते हैंl जिससे एक मुसलमान के कत्ल में आधे शब्द
से भी मदद की मनाही साबित है:
जो
व्यक्ति आधे शब्द के जरिये भी किसी मुसलमान के क़त्ल में मदद करता है वह
कयामत के दिन अल्लाह की रहमत से महरूम इस हाल में पेश किया जाएगा की वह
शब्द उसकी आँखों के बीच लिखा हुआ होगाl”
ऊपर
संदर्भित सारे कुरआनी आयतों और हदीसों से मुसलामानों के कत्ल की सख्त
मनाही साबित होती हैl इस आयतों से ज़ाकिर मुसा हकीकी इस्लाम को समझ सकता है
और यह जान सकता है की अलकायदा और तालिबानी सिद्धांत निर्माताओं ने किस तरह
उसकी नकारात्मक ज़ेहन साज़ी की हैl चाहे वह जितने भी दावे करें, जितना चाहे
इस्लाम व शरीअत का नाम इस्तेमाल कर लें, इस्लाम कभी भी उनके इस तरह के
कामों को जायज नहीं कर सकता, बल्कि ऐसे काम अंजाम देने वालों पर सख्त वईद
नाज़िल हो चुकी है की अल्लाह पाक उन पर अज़ाब नाज़िल फरमाएगा और उन पर अपनी
लानत बरसाएगा और इस तरह उन्हें एक दर्दनाक अज़ाब में डाल देगा, क्योंकि यह
ऐसे लोग हैं जो जान बूझ कर बेगुनाह मुसलामानों को कत्ल कर रहे हैंl
एक
और अहम बात यह है की अलकायदा और इस जैसी तंजीमों से प्रभावित ज़ाकिर मुसा
अपनी उस गलती से अनजान है की वह जिस आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है दरअसल
उससे कश्मीर के लोग गुलाम बनने वाले हैंl इस आज़ादी की संघर्ष का उद्देश्य
लोगों को इजहारे राय की आजादी से महरूम करना हैl उसे यह मालूम होना चाहिए
कि इस्लाम अभिव्यक्ति की आज़ादी और परामर्श की आज़ादी अता करता है, शर्त यह
है की वह इस्लाम के खिलाफ ना हो, और उसका आज़ादी के लिए अपने संघर्ष को
राजनीतिक करार देना “ अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” के श्रेणी में आता है जी
कि इस्लाम के खिलाफ नहीं हैl और जहां तक आज़ादी की बात है तो अलगाववादी सहित
सभी कश्मीरियों को उनके मज़हब पर अमल करने और सांस्कृतिक और सामाजिक तरक्की
में हिस्सा लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हैl इसलिए, यह लोगों को
“आज़ादी के संघर्ष” के नाम पर बेवकूफ बनाने जैसा होगाl
और
जहां तक कश्मीर में “इस्लामी हुकूमत” के कयाम की बात है तो ज़ाकिर मूसा को
यह समझना चाहिए की भारत और उसके राज्य कश्मीर में रहने वाले मुसलामानों को
मज़हबी फ़राइज़ की अदायगी के लिए वह सभी बुनियादी मज़हबी आज़ादी हासिल है, जिसका
मतलब यह है की रूहानी अर्थ में वह पहले से ही “इस्लामी हुकूमत” में हैंl
फर्क केवल इतना है की यहाँ कोई खलीफा या मुस्लिम हाकिम नहीं बल्कि यहाँ
भारत में मुसलमान कयामत के दिन अपने आमाल के लिए केवल अल्लाह पाक की बारगाह
में जवाबदेह हैंl भारतीय मुसलामानों को जो मज़हबी आज़ादी हासिल है वह रूहानी
तरक्की के हुसूल और तकवा की राह अख्तियार करके अल्लाह और उसके महबूब नबी
सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कुर्बत हासिल करने के लिए काफी हैl प्रश्न यह
है कि कश्मीरियों सहित भारतीय मुसलमानों को एलानिया इस्लामी अहकाम व फ़राइज़
अदा करने, तजकिया नफ्स, इस्लाह ज़ाहिर व बातिन, रूहानी मर्तबा हासिल करने और
अल्लाह का ज़िक्र करने से कौन रोकता है? इसी तरह इस्लामी रुसुमात व मामुलात
पर अमल करने से उन्हें कौन रोकता है? जब कोई उन्हें धार्मिक आज़ादी से नहीं
रोकता तो फिर इस तरह की तहरीक से उनका, या किसी कश्मीरी मुसलमान या फिर
भारत या फिर इस्लाम का क्या फायदा हैl ज़ाकिर मुसा को यह जान लेना चाहिए की
ख्वाजा गरीब नवाज़ का शुमार भारत की बड़ी इस्लामी हस्तियों में होता हैl
उन्होंने अपने अमल व किरदार से अल्लाह व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से
मुहब्बत की जो मिसाल पेश की है वह किसी इस्लामी हुकूमत के तहत ज़िन्दगी
गुज़ार कर नहीं की, बल्कि ऐसे माहौल में जहां दूर दूर तक कोई मुसलमान नज़र
नहीं आता थाl
सन्दर्भ:
risingkashmir.com/news/zakir-quits-hizb-says-not-said-anything-against-geelani
thewire.in/politics/kashmir-hizbul-mujahideen-hurriyat-zakir-musa)
(जारी...............)
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