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Friday, May 11, 2018

His Name is Khan and He is a Hero उसका नाम खान है और वह एक नायक है






अरशद आलम, न्यू एज इस्लाम
कफील खान, जो बाबा राघव दास (बी आर डी) मेडिकल कालिज/ हस्पताल मामले में एक आरोपी हैं
अक्सर सभ्य समुदायों में इसे घोटाला माना जाता हैl डाक्टर कफील खान जिन्होंने गोरखपुर हादसे के दौरान दर्जनों बच्चों की ज़िंदगी बचाई वह पिछले 8 महीनों से जेल में हैंl यह वही व्यक्ति है जो विभिन्न स्रोतों से आक्सीजन हासिल करने के लिए इधर उधर भागते हुए दिखाई दे रहे थे ताकि गोरखपुर हस्पताल के बच्चों की मौत आक्सीजन की कमी से ना होl उनके बात के समर्थन में काफी सबूत मौजूद हैं: पैरा शस्त्र सीमा बिल में अब भी रिकार्ड मौजूद है कि डाक्टर कफील ने उनसे अनुरोध किया था कि वह ट्रकों से उनकी मदद करें ताकि वह ऑक्सीजन सिलिंडर आकस्मिक तौर पर हस्पताल पहुंचा सकेंl बच्चों को बचाने के लिए उनकी पुरी कोशिशों के बावजूद बच्चों की मृत्यु हुई हैंl पूरा देश खौफ व हरास में था जैसा कि भाजपा के मंत्रियों ने यह कह कर स्थितियों का तार्किक स्पष्टीकरण करने की कोशिश की है कि इस तरह के मामलों में अतिशयोक्ति से काम नहीं लेना चाहिएl हमेशा चाक व चौबंद रहने वाले प्रधानमंत्री ने इस मामले को इस लायक भी नहीं समझा कि इस पर एक ट्विट (ट्वीट) ही कर दी जाएl इसी संसदीय क्षेत्र से पांच बार संसद सदस्य रह चुके मुख्यमंत्री को इतनी भी फुर्सत नहीं मिल सकी कि वह उन अभिभावकों के गम में शरीक हो सकें जिन्होंने जानकाह हादसे में अपने बच्चे खोए थेl किसी भी देश में नागरिकों की ओर से निंदा के लिए इतनी ही आपराधिक लापरवाही काफी होनी चाहिएl भारतीय नागरिकों का अहसास इतना मुर्दा हो चुका है कि यहाँ बच्चों के इस खौफनाक कत्ल को केवल किसी भी दुसरे दुखद घटना के तौर पर देखा गया हैl
सरकार नई थी और यह अच्छे दिन के वादे पर बनी थीl इसलिए सिस्टम (system) को अपराधियों की तलाश करनी चहिये थीl अभी लोगों के आंसु भी नहीं सूखे थे कि सिस्टम (system) ने डाक्टर कफील को सज़ा देना शुरू कर दियाl इस दर्दनाक त्रासदी की लम्बी रात के बाद बच्चों को बचाने के लिए उनकी हमदर्दी और कोशिशों पर डाक्टर कफील की मिडिया में हर जगह प्रशंसा होने लगींl लेकिन इसके बाद उनकी पहचान चरमपंथियों को रास नहीं आईl एक मुसलमान हीरो कैसे बन सकता है? आखिर कार एक ऐसी हुकूमत थी जो मुस्लिम विरोधी मुद्दों पर चुनाव लड़ कर सत्ता में आई थी और उनके लिए इससे बड़ी तकलीफ की बात यह थी कि सरकार की घातक चुप्पी के बीच एक मुसलमान था जिस की विभिन्न स्थानों पर प्रशंसा की जा रही थींl ट्रोल (troll) सक्रिय हो गएl डॉक्टर कफील के अतीत के पन्ने उलटे गए और उन पर बेवकूफी भरे आरोप लगाए गएl जिनमें हास्यास्पद और झूटे आरोप भी थेl
डॉक्टर कफील पर हस्पताल से आक्सीजन बाहर निकलने का आरोप लगाया गयाl यह अपने आप में एक अजीब बात है कि तरल औक्सीजन को इतनी आसानी के साथ कैसे बाहर लाया जा सकता हैl हमें यह नहीं मालूम कि डॉक्टर कफील ने यह काम किस तरह अंजाम दियाl ना ही यह सिस्टम (system) जो उनहें अपराधी ठहरा रही हैl हमें यह बताने के लिए तैयार है कि डॉक्टर कफील ने यह कैसे कियाl जबकि दूसरी तरफ इस बात के दस्तावेजी सबूत मौजूद हैं कि पिछले एक हफ्ते से आक्सीजन की उपलब्धता खतरनाक तौर पर कम चाल रही थीl यह भी रिकार्ड में है कि सप्लायर (supplier) ने उस समय तक आक्सीजन की और अधिक उपलब्धता रोक दी थी जब तक कि हस्पताल ने उनकी बाकी रकम चुका नहीं दियाl अगर इतनी मौतों के लिए कोई जिम्मेदार है तो वह उस जिले का चीफ मेडिकल आफीसर हैl लेकिन अगर आप किसी मुसलमान को बलि का बकरा बनाने पर कादिर हैं तो अकल और मंतिक का सारा इस्तेमाल उसी इंसान को आरोपी बनाने के उद्देश्य से किया जाना चाहिएl
डॉक्टर कफील पर इसलिए भी शिकंजा कसा गया कि वह हस्पताल में काम करने के अलावा अपनी निजी क्लीनिकल भी चलाते थेl उन पर यह आरोप लगाया गया कि चूँकि वह अपनी एक निजी क्लीनिकल भी चलाते हैं इसी लिए उन्होंने हस्पताल पर काफी ध्यान नहीं दी जिसके नतीजे में इतने बच्चों की मौत हो गईl यह आरोप बहुत हास्यास्पद हैl भारत में अक्सर डॉक्टर अपनी निजी क्लीनिकल भी चलाते हैंl गोरखपुर हस्पताल के सभी डॉक्टर अपनी निजी क्लीनिकल चलाते हैंl यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इसपर कोई पाबंदी नहीं लगाईं हैl अगर तर्क यह था कि सभी डॉक्टरों पर निजी क्लीनिकल चलाने पर पाबंदी लगाईं जाए तो यह अलग पहलु था और इस पर बहस की जा सकती थीl लेकिन निजी क्लीनिकल चलाने की बिना पर इसलिए केवल एक डॉक्टर को चिन्हित करना क्योंकि वह मुसलमान है, इससे संगठित पक्षपात और घृणा की बू आती हैl
इसलिए कि अगर आप किसी व्यक्ति के पेशावराना आचरण में कोई कमी तलाश करने से असमर्थ होते हैं तो फिर आप उसके अतीत में गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश करते हैंl बिलकुल यही डॉक्टर कफील के साथ भी हुआl 2015 में उन पर बलात्कार का आरोप लगाया गया थाl ट्रोल (troll) भड़क उठेl डॉक्टर कफील के अपराधी होने का एक बेहद संतोषजनक सबूत उनके हाथ लग चुका थाl आखिरकार ऐसा क्यों कर हो सकता है कि जिस व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप लगाया गया हो वह लाखों लोगों के लिए नायक बन जाएl लेकिन नैतिक तौर पर उनको हतोत्साहित करने के अपने जोश व जज्बे में अतिवादी यह भूल बैठे कि पुलिस ने उन के मामले की छान बीन की थी जिसमें यह पाया गया था कि उनके खिलाफ लगाया गया यह आरोप गलत और निराधार था और उनके खिलाफ किसी साज़िश का हिस्सा थाl लेकिन जो लोगों की धार्मिक पहचान के आधार पर अपने राजनितिक दृष्टिकोण कायम करते हैं उनहें केवल आरोप ही जुर्म का एक पक्का सबूत लगता हैl
आठ महीने के एक लम्बे समय तक जेल की पीड़ा झेलने के बाद डॉक्टर कफील ने एक खुला ख़त लिखा है जिसमें उन्होंने अपनी बेगुनाही का एलान किया हैl निचली अदालत उनकी जमानत की अर्जी बार बार खारिज कर चुकी है और हाईकोर्ट किसी ना किसी बहाने उनकी जमानत की दरख्वास्त पर सुनवाई टाल रही हैl गोरखपुर के डी एम और स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों पर उनका आरोप सहीह है कि उन्होंने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि इस हस्पताल को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने वालों का बिल नियमित रूप से चुकाया जा रहा है कि नहींl उन लोगों के बजाए वह अपने ना किये हुए गुनाह की सजा जेल में काट रहे हैंl इस देश का कानून, जिसने  कई बार यह एलान किया है कि जमानत देना अपवाद नहीं बल्कि कानून है, जब मुसलमान की बारी आती है तो इसका पैमाना बदल जाता हैl केवल डॉक्टर कफील ही नहीं, बल्कि इन हालात में उनकी गलत गिरफ्तारी की वजह से उनका पूरा खानदान एक कड़े दौर से गुज़र रहा हैl सिविल सोसाइटी को अपनी गफलत से जागरूक हो कर एक मुहिम शुरू करना चाहिए ताकि डॉक्टर कफील के साथ जल्द से जल्द न्याय होl

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